गर्भवती महिलाओं के आहार या गर्भवती महिलाओं को किस तरह के आहार देनी चाहिए

गर्भवती के लिए समयोचित आहार का प्रयोग अत्यावश्यक है। गर्भवती को सादा-पौष्टिक भोजन, जो शीघ्र पच जाये देना चाहिए। उदाहरणत: मूंग की दाल रोटी दें अथवा हरी तरकारियां जैसे घिया (लौकी) टिंडे, तोरी, परवल, शलगम, चुकंदर, गाजर, टमाटर, पालक साग रोटी के साथ खिलायें। मांसाहारी स्त्रियां बकरे के मांस के शोरवे के साथ रोटी खा सकती हैं। यदि इसके साथ हरी तरकारियों में से कोई तरकारी पकाई जाय तो ज्यादा बेहतर है।

इनके अतिरिक्त दूध, चावल, खीर, फोरनी, साबूदाना और खिचड़ी भी खिला सकते हैं। भोजन के साथ मक्खन छाछ शौक से इस्तेमाल करें। अंडा और मछली भी खायें। आम, खरबूजा, तरबूज, अनार, अंगूर ‘लोकाट आदि में से जो भी फल मिले अवश्य खायें। किन्तु कब्ज करने और देर से पचने वाली हर प्रकार की चीजों जैसे लोबिया, मसूर, अरबी, बैगन और भिंडी से बचा जाये। कोई नशीली चीज कदाचित न खायें पियें। चाय और कहवा का प्रयोग भी उचित नहीं है। तथापि सर्दियों में उचित मात्रा में ले सकते हैं।

गर्भवती को जो भी आहार दिया जाये, वह अच्छी तरह पका हुआ और ताजा हो। कच्ची-पकी वासी अथवा बुसी हुई चीजें कभी न दें। भोजन खुब भूख लगने पर खाया जाये और कम खाया जाये।

विशेष ध्यान देने योग्य बातें।

भिन्न-भिन्न मौसमों में, खासतौर से ग्रामीण अंचलों में, उपलब्ध वस्तुएं जैसे चने, सरसों का हरा शाक तथा पालक, बथुआ, शलजम, गाजर, मूली आदि का सेवन अवश्य करना चाहिए। गाजर, मूली, टमाटर जैसी सब्जियां कच्चे रूप में खाने में ज्यादा फायदेमंद होती हैं। इसी तरह मौसम के फल, जैसे आम, अमरूद, बेर, ककड़ी, खीरा, कचरियां, खरबूजा, तरबूज आदि भी सुस्वाद और पोषक वस्तुएं हैं।

गर्भवती महिलाओं के लिए कुछ जरूरी नियम।

  • कुछ फल और सब्जियां कच्ची प्राकृतिक रूप में अवश्य खानी चाहिए। आग पर भोजन को अधिक देर तक तलने, भूनने और पकाने से उसके पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं।
  • अगर कोई विशेष खाद्य-पदार्थ किसी महिला को माफिक न पड़ता हो, तो वह उसे न खाये। जिन पदार्थों से कब्ज पैदा होता हो, उन्हें भी नहीं खाना चाहिए।
  • कुछ भोजन तरल रूप में लेना चाहिए जैसे-फलों के रस। गर्भकाल में पानी भी काफी पीना चाहिए, ताकि पेशाब ज्यादा हो, और शरीर के गन्दे तत्व बाहर निकलते रहें।

गर्भकाल में खून की कमी

प्रकृति का यह नियम है कि गर्भ में पनपने वाला बच्चा अपनी खुराक माता के शरीर से छीनता रहता है। उधर भावी माता स्वाभाविक रूप से अधिक भोजन नहीं कर पाती। इसलिए हर गर्भिणी के शरीर में इस दौरान लौहे जैसे खनिज तत्व की कमी पड़ जाती है। लौह तत्व स्वस्थ खून बनाने के लिए जरूरी होता है। इसलिए हर गर्भवती में कुछ-न-कुछ हद तक खून की कमी हो जाती है और शरीर में कमजोरी अनुभव होने लगती है।

लौह की इस कमी को दूर करने के लिए पालक, ककड़ी, खीरा प्याज, चुकन्दर, रसभरी, पपीता, सन्तरा, तरबूज, अनार, शलजम के पत्ते और टमाटर लेने चाहिए।

भोजन में मांस।

जिगर, लाल मांस और अण्डे से भी लौह तत्व प्राप्त होता है। अनाजों के छिलकों में भी लौहांश होता है। इस दृष्टि से आटे को छानकर उसका चोकर नहीं फेंकना चाहिए, बल्कि चोकर समेत आटे की रोटी बनानी चाहिए। भोजन के बारे में इस सावधानी से लौह की कमी दूर करने में सहायता तो मिलती है, लेकिन पूरे फायदे के लिए आयरन फोलिक एसिड की गोलियां खानी चाहिए। ये गोलियां सभी स्वास्थ्य केन्द्रों पर दी जाती हैं। गर्भावस्था में यथासंभव रति-क्रिया से बचना और संयम से रहना माता और भावी शिशु, दोनों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।

गर्भवती महिलाओं में कुछ सामान्य शिकायते होती है:

कई बार कुछ महिलाओं को गर्भकाल में कुछ छोटी मोटी शिकायतें हो जाती है, जिनका कोई खास महत्त्व नहीं होता। आमतौर पर ये शिकायतें समय पर स्वयं ही ठीक हो जाती है। यह जरूरी नहीं है कि सभी शिकायतें सभी गर्भवती महिलाओं को हों। बहरहाल, गर्भावस्था से लेकर प्रसव तक महिलाओं के शरीर को काफी परिवर्तन से गुजरना पड़ता है।

अत: कुछ शिकायतें होना बहुत कुछ स्वभाविक बात होती है। इन्हें गम्भीर रूप से नहीं लेना चाहिए। मातृत्व का गौरवशाली पद प्राप्त करने में यदि कोई छोटा-मोटा शारीरिक कष्ट भी हो, तो वह सहन योग्य होता है।

जी मिचलाना और उल्टी:

यह विकार सिर्फ सुबह एक दो घण्टों के लिए होता है। गर्मी के मौसम में नींबू की मीठी या नमकीन ठंडी शिकंजवी या दूसरे ठंडे पेय लाभ करते हैं। सुबह विस्तर छोड़ने से पहले ही बिस्कुट मुर मुरे, भुने चने या आलू के चिप्स खा लेने से भी लाभ होता है। प्रायः छः सप्ताह में यह शिकायत अपने आप दूर हो जाती है।

छाती की जलन:

यह जलन पित्त बढ़ने के कारण होती है। नींबू मिला पानी पीने या नींबू चूसने से लाभ होता है। एक बड़ा चम्मच भर मिल्क आफ मैगनेशिया अथवा उसकी एक गोली खा लेने से जलन शांत होती है।

कब्ज:

अक्सर गर्भकाल में महिलाओं को कब्ज हो जाती है। लेकिन इसे कोई बड़ी शिकायत नहीं समझना चाहिए। कब्ज दूर करने के लिए दस्तावर दवाइयां न लें। एक गिलास पानी में चार चम्मच शहद और एक नींबू मिलाकर पियें, हरे पत्तों वाली सब्जियां और मौसम के फल ले जो कब्ज दूर करने में सहायक होते है।

टांगों और टखनों की सूजन:

गर्भकाल का एक तिहाई समय पूरा हो जाने के बाद पेट का भार बढ़ जाता है। इसलिए शरीर का जलीय भाग नीचे की तरफ उतर आता है। टांगें और पैर भारी हो जाते हैं। गर्मी के मौसम में तथा खड़े होने पर सुजन बढ़ जाती है। गर्भिणी महिला को दिन में किसी समय अपनी टांगें ऊंचे स्थान पर रखनी चाहिए अथवा वह टांगों को फैलाकर बैठे। इसमें संकोच नहीं करना चाहिये। टांगों को ठंडे पानी में डुबोकर बैठने से भी आराम मिलता है। रात को सोने से सूजन उतर जाती है।

पिण्डलियों की ऐंठन:

प्रायः चार-पांच महीने की गर्भिणी को कभी-कभी पिण्डलियों में ऐंठन मालूम पड़ने लगती है। पिण्डली की पेशियां इकट्ठी होकर मोटी गुठ्ठल सी बन जाती हैं। सहलाने या मालिश करने से यह शिकायत दूर हो जाती है यह कोई नुकसान पहुंचाने वाली बात नहीं होती।

उदर पीड़ा:

आधा गर्भकाल पार कर लेने के बाद कभी-कभी पेट में दर्द अनुभव होने लगता है लेकिन यह प्रसव का दर्द नहीं होता। यदि लेटी हुई हालत में दर्द हुआ हो, तो चलने फिरने से ठीक हो जाता है। खड़ी हालत में दर्द हो, तो लेटने और आराम करने से शांत हो जाता है।

बेहोशी:

बेहोशी हरेक महिला को नहीं आती। कभी रसोई घर में अधिक गर्मी के कारण अथवा ज्यादा चलने या शारीरिक श्रम करने के कारण मूच्र्छा हो सकती है यह मूच्र्छा थोड़े समय में खुद ही ठीक हो जाती है।

पीठ दर्द:

यदि गर्भिणी पीठ में दर्द महसूस करती है तो यह दर्द पीठ में साधारण तेल की मालिश से ठीक हो जाता है, इस दर्द से कोई नुकसान नहीं पहुंचता।

गर्भवती महिलाओं में कुछ गम्भीर और खतरनाक लक्षण

1। योनि मार्ग से रक्त बहना।

2। चेहरे आंखों, और अंगुलियों में सूजन आना।

3। सिर में तेज दर्द पैदा हो जाना।

4। आंखों से धुंधला दिखाई देना और चीजों की पहचान में दिक्कत।

5। गर्भवती के पेट में तेज दर्द होना।

6। कुछ घण्टों में ही कई बार उल्टी हो जाना।

7। सर्दी लगकर तेज बुखार आना।

8। प्रसव समय से पहले पानी की थैली फट कर पानी बहना।

9। तेरह सप्ताह के बाद 24 घण्टे तक गर्भस्थ शिशु की हरकतें न होना।

नोट:- गर्भवती महिलाओं में इस तरह के सभी लक्षण उत्पन्न होने पर तुरन्त डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।

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