गर्भावस्था यौवनकाल में हर स्त्री को पुरुष की और हर पुरुष को स्त्री की आवश्यकता होती है। यह एक स्वभाविक और प्राकृतिक नियम है। विवाह के बाद स्त्री-पुरुष शारीरिक मिलन के लिए स्वच्छंद होते हैं, जो प्राकृतिक रूप से अनिवार्य और स्वभाविक है। शारीरिक मिलन के प्रथम दिन को ‘सुहाग रात या मधुमास अथवा 'हनीमून' आदि कहते हैं। इस दिन पुरुष स्त्री एक दूसरे के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाते है । यही स्वर्गीय आनन्द की अनुभूति होती है इसके बाद स्त्री-पुरुष संभोग-क्रिया के आनन्द में सराबोर हो जाते हैं।
गर्भ धारण होने के कुछ चिह्न हैं, जिनके प्रकट होने से गर्भ की जांच हो सकती है जब एक स्वस्थ विवाहित स्त्री का मासिक धर्म बन्द हो जाता है, तो इसे गर्भ धारण करने का एक विशेष चिह्न समझा जाता है। किन्तु कई बार किसी रोग के कारण भी मासिक धर्म बन्द होने के साथ ही दूसरे चिह्न भी प्रकट हो जाये तो यह धोखा दूर हो सकता है।
जब गर्भ को चार-पांच महीने बीत जाते हैं तो बच्चा पेट में हिलने-डुलने लगता है। जो गर्भ धारण का निश्चित चिह है। गर्भ धारण से गर्भवती के स्तनों में भी परिवर्तन होने लगता है। अतएव गर्भ धारण के दो महीने उपरान्त से स्तन बढ़ने लगते हैं और इनमें मीठा-मीठा दर्द होने लगता है। निपल के चारों ओर के हल्कों की रंगत गहरी लाल हो जाती है।
इन चिह्नों के अतिरिक्त यह भी स्पष्ट है कि गर्भ के आरम्भिक तीन महीनों में गर्भाशय पेड़ में महसूस नहीं होता। किन्तु गर्भ धारण के उपरान्त जब वह बढ़ने लगता है तो चौथे महीने में टटोलने पर पेडू में महसूस होने लगता है। पांचवें महीने में गर्भाशय बढ़ कर नाभि के निकट पहुंच जाता है। छठे महीने में नाभि तक पहुंच जाता है और उसके बाद नाभि के ऊपर तक बढ़ जाता है और पेट उभर कर तन जाता है।
गर्भ की अवधि नौ महीने प्रसिद्ध है, किन्तु वास्तव में अधिकांश स्त्रियों के लिए गर्भ की ठीक अवधि 280 दिन होती है। यदि हर महीना तीस दिन का गिना जाये तो आम तौर पर नौ महीने दस दिन के बाद बच्चा पैदा हो जाता है; किन्तु कई बार इससे दो-तीन दिन कम या अधिक भी हो सकते है, कभी बच्चा दस महीने के बाद भी पैदा होता है और कभी-कभी तो बच्चे दो साल के बाद पैदा होते देखे गये हैं।
उदाहरणतः यदि कोई स्त्री पहली जनवरी को मासिक धर्म से निपटकर नहाये, तो इस तिथि से नौ अंगेजी महीने गिन कर उसमें सात दिन बढ़ा दिये जायें। इस हिसाब से 8 अक्तूबर को गर्भ की अवधि (280 दिन) पूरी हो जायेगी और यही तिथि बच्चे के उत्पन्न होने की होगी। परन्तु जैसा कि हम पहले बता चुके हैं, यह एकदम सही अवधि नहीं है। इसमें कुछ दिन की कमी-बेशी हो सकती है।
नोट:- यदि किसी अकस्मात् घटना से बच्चा सात महीने से पहले पैदा हो जाये तो वह प्रायः जीवित नहीं रहता। परन्तु सात महीने पूरे होने के बाद जो बच्चा पैदा होता है, वह अक्सर जीवित रहता है।
गर्भवती की रक्षा के लिए उसे शुद्ध पवित्र हवा में रखा जाये। एक साफ सुथरा कमरा जिसमें हवा और रोशनी स्वच्छता से आ सके उसके सोने और आराम करने के लिए विशेष रूप से निश्चित कर दिया जाये। साफ सुथरा पानी पीने के लिए दिया जाये। शरीर की सफाई के लिए वह नित्य नहाये। नहाने के लिए गर्मियों में ठंडा और सर्दियों में गर्म पानी इस्तेमाल किया जाये।
यदि गर्भवती कमजोर हो, तो गर्मियों में भी नहाने के लिए हल्का गर्म पानी देना उचित है। नहाने धोने के बाद साफ सुथरे कपड़े पहने जायें। कपड़े मौसम की गर्मी-सर्दी के अनुरूप हों और जैसे भी हों खुले हों, तंग कपड़े कदाचित् न पहनें और न अजारबंद (नाला) कस कर बांधे।
गर्भवती के लिए रात को कम-से-कम आठ घंटे सोने की आवश्यकता है। दिन में विशेष कर गर्मी के दिनों में दोपहर को एक दो घंटे सो रहे तो कई हर्ज नहीं है। हर वक्त सुस्त पड़े रहने से पाचन-शक्ति बिगड़ जाती है, और कब्ज रहने लगती है जो गर्भवती के लिए अत्यन्त हानिकारक है।
घर का काम-काज जो भी किया जा सके अवश्य करें, किन्तु भागना-दौड़ना, उछलना-कूदना, कोई भारी बोझ उठाना और बार-बार सीढ़ियां उतरना-चढ़ना गर्भवती के लिए हानि की बातें हैं और इनसे बचना ही अच्छा है। इनके अतिरिक्त गर्भवती के लिए तांगा अथवा बैलगाड़ी की सवारी जिसमें जोर से हिचकोले लगें, ठीक नहीं है।
गर्भवती को हर प्रकार के दुख-विषाद, चिन्ता,-द्विविधा, क्रोध और भय ये भी बचना आवश्यक है। कई बार किसी असाधारण आघात से अथवा सहसा डर जाने से गर्भपात हो जाता है। सारांश यह है कि स्वास्थ्य और सशक्त बच्चा जनने के लिए गर्भवती को चाहिए कि गर्भ के दिनों में हर वक्त प्रसन्नचित्त रहे। विचार पवित्र रखे, सम्भोग से बचे और किसी ऐसे घर में न जाय जहां चेचक, खसरा, हैजा और प्लेग जैसे संक्रामक रोगों का कोई रोगी हो अथवा वहां इन रोगों से ग्रस्त कोई रोगी रह चुका हो। कोई तेज दस्तावर अथवा कै लाने वाली दवा भी गर्भवती को नहीं देनी चाहिए।
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