जिस रोग में पांव शिला के समान भारी एवं सख्त हो जाता है उसे श्लीपद या फीलपांव कहते हैं।
प्रायः तीव्र बुखार के साथ जंघा प्रदेश में दर्द के साथ लस ग्रंथि की सूजन होकर क्रमश पांव में सूजन आ जाती है। तीन-चार दिन में ज्वर शांत हो जाता है। इस तरह रोग के बार-बार आक्रमण होते रहते हैं। हर बार सूजन कुछ शेष रह जाती है। जो दूसरी बार के आक्रमण से पुनः बढ़ जाती है। अंत में सूजन स्थाई हो जाती है। अधिकतर पैरों का श्लीपद मिलता हैं उसके बाद लिंग व अंडकोषों का फिर हाथों को मिलता है।
यद्यपि कान, स्तन, होंठ, नासिका व भग के होंठ का भी एलीपद कभी-कभी दिखाई देता है। अंडकोषों का भार 25 किग्रा। तक हो सकता है। स्त्रियों में स्तन फैलकर घुटने से नीचे तक लटकते हुए हो सकते हैं। भारतवर्ष में यह हिमालय की तराई, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, कोचीन, तथा त्रावणकोर में मिलता है।
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