हमारे देश में हृदय रोग के अधिकांश मरीजों को जो रोग होता है उसे रूमेटी हृदय रोग या रूमैटिक हार्ट डिजीज कहते हैं। रूमेटी रोग के बाद हमारे यहां फुफ्फुसीय हृदय रोग या पुल्योनरी हार्ट डिजीज होती है। इसके अलावा रक्तचाप से ग्रस्त हृदय रोग और जन्मजात हृदय रोग और भी होते हैं।
हृदय रोग के कुछ अन्य प्रकार भी हैं जैसे वाइरस से होने वाले, इनफ्लूएंजा से होने वाले, डिप्थीरिया से होने वाले, ट्यूमर से होने वाले। अमीबा नाशक दवाओं के प्रयोग से भी कभी-कभी घातक हृदय रोग हो जाते हैं।
रूमेटी हृदय रोग के जन्म का प्रमुख कारण गरीबी और कुपोषण है हमारे देश में दिल के कुल बीमारों में से औसत रूप में 50 प्रतिशत रूमेटी, 20 प्रतिशत फुफ्फुसीय, 15 प्रतिशत हृदय धमनीय, 5 प्रतिशत जन्मजात और 10 प्रतिशत अन्य रोगों से पीड़ित होते हैं।
बच्चों के गले में टान्सीलाइटिस होते हैं या उनका गला खराब रहता है। इसका कारण एक विशेष कीटाणु होते हैं, जिन्हें स्ट्रेप्टोकोकस हाएमोलीटिकस कहते हैं। ये कीटाणु न केवल टान्सिल और बुखार को जन्म देते हैं, बल्कि इनका विष शरीर में एण्टी-बाडी पैदा करता है। यह विष शरीर में एण्टीजन का काम करके और एण्टीबाडी पैदा कर के रूमेटी बुखार को जन्म देते हैं। और साथ ही मरीज के जोड़ों में दर्द पैदा कर देते हैं। इस विष का खराब प्रभाव हृदय के बाल्वों और माइकार्डियम (मध्य हृदय-स्तर) पर पड़ता है।
माइकार्डियम और बाल्वों में कभी खराबी आने के फलस्वरूप हृदय के फैलने और संकुचन में कमी आ जाती है। अगर यह विष शरीर में बार-बार बनता रहे तो बाल्वों और माइकार्डियम में घाव के से निशान पड़ जाते हैं। जब यह निशान भर कर ठीक हो जाते हैं। तब बाल्व और माइकार्डियम सिकुड़ जाता है। फलस्वरूप बाल्व या तो संकीर्ण हो जाते हैं या फिर सूख कर उनका आकार छोटा हो जाता है, जिसकी वजह से रक्त संचार कम या ज्यादा हो जाता है। जब रक्त संचार में कमी या बढ़ोत्तरी होने लगती है, तब रोग के लक्षण प्रकट होने लगते हैं।
इसका पूर्ण उपचार शल्य-चिकित्सा द्वारा ही होता है। शल्य चिकित्सा हृदय में बाल्व का प्रत्यारोपण कर देते हैं और रोगी को आराम हो जाता है। बच्चे को संतुलित भोजन और खुली हवा में रखना इस रोग से बचने का सबसे अच्छा उपाय है।
यह रोग अधिकांशतः प्रौढ़ावस्था और बुढ़ापे में उन लोगों को होता है जो कि तम्बाकू पीते हैं और जिनके मकानों में स्वच्छ हवा का अभाव हो तथा जो लोग धुएं और धूल में रहते और काम करते हैं। इस रोग का दबाव दिल पर पड़ता है। और फुफ्फुसीय हृदय रोग के लक्षण उभरने लगते है।
1। तम्बाकू कम पीना और घटिया किस्म के तम्बाकू को बिल्कुल काम में न लाना बहुत जरूरी है।
2। आवास साफ-सुथरा और हवादार होना चाहिए।
3। जैसे ही इस रोग के प्रारम्भिक लक्षण-खाँसी, बलगम-दीख पड़े डॉक्टर की राय लेकर एण्टीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल करना चाहिए।
यह रोग यों तो आमतौर पर 40 वर्ष की आयु के बाद ही होता है, लेकिन आधुनिक जीवन की आपाधापी में अब यह नवयुवकों को भी होने लगा है। यह बहुत घातक रोग है और इसका आक्रमण उस समय होता है जब आदमी पर पारिवारिक और सामाजिक दायित्व बहुत अधिक होते हैं। इस रोग के कारणों में से मुख्य कारण धूम्रपान करना, शारीरिक श्रम न करना, पौष्टिक आहार खाना, मोटापा, खून में चबी की अधिक होना, मानसिक तनाव आदि है। यह रोग समद्धि, तनाव, आपाधापी के कारण अधिक होता है।
1। आहार और व्यायाम पर आदमी समुचित ध्यान दे।
2।
धूम्रपान न करें और करें भी तो बहुत कम्।
3। रक्तचाप पर नियन्त्रण रखे।
4। मोटापे से बचें और चलने फिरने का अभ्यास बनाये रखें।
जिन लोगों को बहुत समय से रक्तचाप का रोग होता है। उनको भी हृदय का यह रोग हो जाता है। इस प्रकार के रोगी का हृदय आकार में बढ़ जाता है और फिर उन्हें सांस लेने में दिक्कत होती है। सिर में दर्द रहता है और साथ चक्कर भी आते हैं। जिन रोगियों का रक्तचाप बढ़ा होता है उन्हें एक्सरे और इलैक्ट्रोकार्बाग्राम करवाना चाहिए ताकि इस बात का पता लग सके कि बीमारी तो नहीं है।
रक्तचाप के रोगियों को सप्ताह में एक बार जरूर अपना रक्तचाप नपवाना चाहिए और डॉक्टर की सलाह से दवा लेना चाहिए। अगर आपके रक्तचाप का इलाज ठीक हो रहा है तो समझें कि आपको दिल की बीमारी नहीं होगी।
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