प्रसूति काल में मानसिक रोग के लक्षण और घरेलु इलाज
प्रसूता को विशेष कारणों के उपस्थित होने पर सूतिका उन्माद, मनोदोष, स्वयं बडबड़ाने जैसे रोग उत्पन्न हो जाते हैं। प्रसव कष्ट, थकावट, रक्त के बहने आदि कारणों से प्रसूता का शरीर एवं मन दुर्बल हो जाते हैं। पति, शिशु या घर की विपरीत स्थितियों के कारण, प्रसवकालीन कष्ट रक्तस्राव आदि के कारण, पति के विदेश में रहने से उत्पन्न मनोभावों के जोश के कारण, पति या शिशु के प्रति द्वेष के कारण अधिक उम्र की स्त्रियों में अथवा अविवाहित लड़कियों के गर्भाशय जन्य मानसिक कष्ट तथा लज्जा के परिणामस्वरूप मन के दूषित होने पर मानसिक रोग हो जाते हैं।
मानसिक रोग के लक्षण
- सर्व प्रथम रोगियों में अनिद्रा, उदासीनता
- भोजन न करना
- शिशु को प्यार न करना
- पति के प्रति दबी द्वेषभावना उत्पन्न होती है।
- उसके बाद लक्षण बढ़ने लगते हैं तथा रोगिणी क्रोध में आ जाती है।
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मानसिक रोग के घरेलु इलाज
- शत घौत घृत की सिर पर मालिश, धूपन, अंजन, आश्वासन धमकाना आदि उपक्रम करें।
- प्रसूता में पति, परिवार और शिशु के प्रति अति द्वेष की भावना रहती है।
- वह स्वयं घात तथा दूसरे पर भी घात कर सकती है।
- अतः उसे बिलकुल अलग एक शांत कमरे में रखें।
- शिशु को उससे अलग रखे।
- औषधियों में ब्राह्मी, बच, शंखपुष्पी सर्पगंधा आदि के योग लाभकारी होंगे।
- नींद के लिए सर्पगंधा चूर्ण मिलाकर निद्रोदय रस दें।
- पेट साफ करने के लिए दशमूल क्वाथ में मिलाकर एरंड तेल का प्रयोग करें।
- भूख बढ़ाने के लिए क्रव्यादि रस आदि का सेवन करें।
- कस्तूरी भैरव रस वात कुलांतक रस 120 मि.ग्राम दिन में दो बार शहद के साथ दें।
- योगेंद्र रस, अश्वगंधारिष्ट सारस्वतारिष्ट, ब्राह्मी रसायन आदि औषधियां दें।
- उन्माद गज केशरी 240 मि.ग्राम दिन में दो बार, महा चैतशघृत दूध के साथ दें।
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