शवासन एक योगासन है जिसमें शरीर को एक मृतक की तरह पूरा ढीला छोड़ दिया जाता है। इस आसन के नाम से डरिए नहीं। आप निर्जीव होने की केवल कल्पना कर रहे हैं ताकि आपका मन पूरी तरह शांत हो सके और आप अपनी चेतना को बाहरी संसार से अस्थायी रूप से अलग करके अपने आप में समेट सकें।
अतः शवासन का अर्थ केवल लेटना नहीं है, अपितु मानसिक प्रयासों से अपने आपको सम्पूर्ण विश्राम की अवस्था में ले जाना है। शरीर के हर भाग को पूरी तरह शिथिल करते हुए मन को शरीर पर केन्द्रित करना होता है।
कैसे करे शवासन? इसकी विधि निम्न प्रकार से क्रमशःबताई गयी है-
अच्छी तरह देख लें कि आपके माथे पर कोई बल तो नहीं है, कंधे और गर्दन पूरी तरह विश्राम की अवस्था में हैं।
अंगों को शिथिल करने के प्रयास में वे प्राय:और तनाव-युक्त कर लेते हैं। जब शरीर को शिथिल करने की बात कही जाती है तो उसे शिथिल कर दीजिए, शिथिल करने के बारे में सोचिए नहीं।
ऐसा करने से आपका मन बाहरी संसार से हटकर पूरी तरह अंतर्मुखी हो जायेगा और आपको नींद आ जायेगी।
हमारे जीवन मे श्वास का महत्व क्या है? आधुनिक जीव-विज्ञान में, जिसमें मानव-शरीर को मशीन की तरह माना जाता है, श्वसन-क्रिया की व्याख्या इस प्रकार की गई है :
"जीवधारियों और बाहरी पर्यावरण के बीच सदैव गैसों का आदान-प्रदान होता रहता है। मनुष्यों तथा उच्चतर प्राणियों के शरीरों में इस क्रिया के लिए यंत्र होते हैं- इसे श्वसन-प्रणाली कहते हैं।
प्राणियों को जीवित रहने के लिए खनिजों के अतिरिक्त आक्सीजन की भी आवश्यकता होती है। इस प्रक्रिया में ऊतक लगातार आक्सीजन ग्रहण करते हैं तथा कार्बन डाई-आक्साइड उत्पन्न करते हैं। अन्दर जाने वाली वायु प्राण कही जाती है। विभिन्न श्वसन अभ्यास जो हमारे अंदर की वायु को नियंत्रित करने के लिए किए जाते हैं, प्राणायाम कहलाते हैं।
रोग-उन्मूलक विधियों का प्रयोग करने के लिए प्राणायाम की विधियाँ सीखना आवश्यक है। आरम्भ में व्यक्ति को अपनी साँस का अनुसरण करना सीखना चाहिए। सांस का अनुसरण करने का अभिप्राय फेफड़ों में अंदर ले जाने तथा फेफड़ों से बाहर लाने वाली सास की मशीनी प्रक्रिया को तोड़ना है। आप वायु नहीं प्राण अन्दर ले जाते हैं। प्राण-वायु के साथ प्राण-शक्ति (जीवन की शक्ति) अंदर जाती है। जीवन की यह शक्ति हमारे शरीर के प्रत्येक भाग में पहुँचती है। हम जीवित हैं क्योंकि हमारे शरीर का हर भाग जीवित है।
सोने की तैयारी करने से पहले अच्छी नींद के लिए प्राणायाम करना चाहिए। जिन्हें अनिद्रा-रोग नहीं है, वे भी प्राणायाम से लाभ उठा सकते हैं। इससे मन को शांति मिलती है। प्रशांत एवं निर्विकार मन गहरी नींद लेता है जो स्वस्थ रहने के लिए अनिवार्य है।
1.आरामदायक आसन से बैठ जाइए, पालथी मारकर बैठना अधिक सुविधाजनक होगा। अपनी कमर सीधी रखिए परन्तु शरीर ढीला छोड़ दीजिए।
2। धीरे और पूरी तरह भरकर सॉस अन्दर खींचिए। जब प्राण-वायु आपके अन्दर हो, अपने नथुनों को अंगूठे और मध्यिका अंगुली से बंद कर लीजिए। कमर को शिथिल कीजिए।
3। कुछ सेकेण्ड के बाद अपनी अंगुलियाँ हटाइए तथा वायु को धीरे-धीरे और लगातार बाहर निकालिए। अब पूरी वायु बाहर निकाल दीजिए।
4। एक बार फिर अपने नथुने बंद कीजिए तथा फेफड़ों तक थोड़ी देर के लिए हवा मत पहुँचने दीजिए। अब नथुने छोड़ दीजिए और एक बार फिर गहरी साँस लीजिए।
हर रात बिस्तर में जाने से पहले इस विधि को लगभग दस बार दुहराइए। आरम्भ में बिना हवा के और हवा भरकर बहुत कम समय तक फेफड़ों को रोककर रखिए (कुछ सेकेंड तक)। धीरे-धीरे अंतराल को बढ़ाइए तथा श्वास खींचने व छोड़ने का समय भी बढ़ाइए।
वायु को अंदर लेने तथा बाहर निकालने की विधि सरल तथा धीमी होनी चाहिए। झटके से वायु अंदर या बाहर नहीं करनी चाहिए। इसके साथ ही रोग-उन्मूलन संबंधी पहला भाग समाप्त होता है। जिसका भौतिक प्रक्रिया से गहरा संबंध है। रोग-मुक्ति का दूसरा भाग आंतरिक सूक्ष्म ऊर्जा को जगाने से संबंधित है।
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