संस्कृत में अमलतास के वृक्ष को ‘राजवृक्ष', 'आराध' और 'कर्णिकार' कहते हैं। यह एक बड़ा पेड़ है। इसके पत्ते लाल चंदन की तरह होते हैं और चिकने होते हैं। उनका रंग जामुनी लाल रंग जैसा होता है। इसकी फलियाँ लंबी और नीचे की ओर लटकी होती हैं। इस वृक्ष पर पीले रंग के फूल खिलते हैं। इसकी फलियों के भीतर से काले रंग का गूदा प्राप्त होता है। यह पूरे भारतवर्ष में पाया जाता है। ग्रीष्म ऋतु आते ही इस वृक्ष की पत्तियाँ झड़ जाती हैं और फिर से नई कोपलें तथा फलियाँ और फूल लगने लगती हैं।
अमतलास की पत्तियाँ और फलियाँ पेट के रोगों में, हृदय रोग में, वायु विकार में, ज्वर में, पित्त और कफ के नाश में, चर्म रोग में तथा पाचक-शक्ति बढाने में काम आती है। इसकी तासीर ठण्डी होती है। इसकी फली रुचिकर और रक्त को शुद्ध करने वाली होती है।
चर्म रोग जैसे की दाद, खाज, खुजली और फोड़े-फुसी आदि में अमलतास की हरी पत्तियों को कुचलकर (पीसकर) उसकी लुगदी बना लेनी चाहिए। फिर उसे दाद, खाज, खुजली की जगह रगड़ दें। लगभग एक सप्ताह तक दिन में दो बार अवश्य इस क्रिया को दोहराएँ। यह दादों का दादा है। फोड़े-फुसी में इसकी लुगदी को रखकर पट्टी बाँध दें। जल्द आराम होगा।
कब्ज, वायु विकार, मन्दाग्नि, अपच आदि में इस वृक्ष की फलियों के गूदे को शहद में मिलाकर सेवन करें। पेट के सभी विकार इससे नष्ट हो जाएँगे। पेट खुलकर साफ हो जाएगा। पेट साफ रहने पर अनेकानेक शारीरिक व्याधियाँ स्वत: ही समाप्त हो जाती हैं।
खाँसी या खराश होने पर अमतलाश के पत्तों को पानी में उबालकर उसके रास को एक चमच शहद के साथ दिन में तीन-चार बार अवश्य ले । शीघ्र लाभ होगा। इसके अतिरिक्त गले के अन्य रोगों में अमलताश की जड़ को दूध में उबालकर छान लें और उसमें मिश्री मिलाकर पी जाएँ। इससे गले के अन्य सभी रोग ठीक हो जाएँगे । इसे कम-से-कम तीन-चार दिन करे।
कफ, बलगम रुक जाने पर-अमलताश के फूलों का एक भाग और गुलूवंद का दो भाग लेकर आपस में मिला लें और प्रतिदिन इसका सेवन करें। इससे छाती में जमा हुआ कफ-बलगम निकल जाएगा।
अमलतास की फली का गूदा, नागर मोथा, कुटकी, छोटी हरड़, पीपरामूल, इन्हें समान मात्रा में लेकर पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। रोगी को 20 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन 2-3 बार पिलाएँ। बुखार शीघ्र उतर जाएगा।
यदि ‘आँव' हो, तो भी इस काढ़े को पिलाने से आराम मिलता है।
अमलतास के काढ़े की दो-तीन बूंदें कान में डालें। दर्द और पीव खत्म हो जाएगा।
अमलतास की फली के गूदे को हरे धनिये में पीसकर पानी का घोल बना लें और लगभग 20-25 दिन तक उस पानी के कुल्ले कराएँ। इससे जीभ पतली हो जाएगी और हकलाहट दूर हो जाएगी।
अमलतास की फली का एक चम्मच चूर्ण प्रतिदिन पानी के साथ लेने पर हृदय की धमनियाँ मजबूत हो जाती हैं और रक्त-प्रवाह संतुलित हो जाता है। इससे हृदय रोग होने का भय भी जाता रहता है। इसके चूर्ण की फंकी पानी से लेने में यदि परेशानी आए तो उसे शहद में मिलाकर चाट लें।
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अमलतास की फली को जलाकर उसे बारीक पीस लें। जब बच्चे की पसली चले तो चुटकी भर भस्म शहद में मिलाकर उसे चटा दें। पसली चलनी बंद हो जाएँगी।
अमतलास के पत्तों को कुचलकर उसका रस निकाल लें और आधा-आधा चम्मच दिन में तीन बार पिलाएँ। वात रोग में शीघ्र लाभ होगा।
सूखी खाँसी या काली खाँसी यदि किसी को हो तो अमलतास की फली का गूदा, थोड़ा पानी डालकर घोंट लें और उसमें आवश्यकतानुसार खाँड की बूरा डालकर उसकी चाश्नी सी बना लें। फिर उसे दिन में चार-पाँच बार चम्मच से लेकर चाट लें। सूखी खाँसी में तत्काल आराम मिलेगा।
अमलतास की जड़ 10 ग्राम (छाल को) थोडे से जल में पका लें और उसकी बूंदें गले में टपकाने में टांसिल्स में आराम मिलता है।
कुछ लोगों के अण्डकोश नीचे की ओर तादाद से ज्यादा लटकने लगते हैं, जिनकी वजह से उन्हें चलते-फिरने में बड़ी परेशानी होती है। इसके लिए अमलतास की फली का 20 ग्राम गूदा एक गिलास पानी में औटाएँ । जब पानी चौथाई रह जाए, तब उसे गाय के 20-25 ग्राम घी में मिलाकर खड़े-खड़े पी लें। उसे नित्य एक सप्ताह तक कम-से-कम करें। अण्डकोश सिकुड़ जाएँगे।
अमलतास की 4-5 फलियों के छिलकों को पानी में पका लें। जब पानी आधा रह जाये, तब उसमें मिश्री मिलाकर गर्भवती स्त्री को सुबह-शाम पिलाना चाहिए। इससे प्रसव के समय स्त्री को परेशानी नहीं होती और बच्चा आराम से पैदा होता है।
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