चिकन पॉक्स का घरेलू इलाज और इससे बचाव - चिकन पॉक्स के कारण और लक्षण
चिकन पॉक्स या इसे छोटी माता भी कहते है यह एक तीव्र संक्रामक रोग है जो वेरिसेला वायरस के कारण होती है। इसे कुक्कुट चेचक भी कहते है। साधारणतया यह रोग 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में अधिक होती है परन्तु यह रोग किसी भी उम्र में हो सकती है। एक बार इस रोग से आक्रान्त हो जाने पर दुबारा यह रोग नहीं होता तथा जीवन भर के लिए प्रतिरक्षात्मक शक्ति उत्पन्न हो जाती है।
छोटी माता का प्रकोप अधिकांशत: शीत ऋतु में होता है तथा बसंत और गर्मी होने तक चलता रहता है। यह रोग महामारी के रूप में भी फैलता है।
रोग फैलाने वाले वायरस वेरिसेला जोस्टर वायरस आमतौर पर 14-16 दिन परन्तु यह 7 से 21 दिन का भी हो सकता है। संक्रमण काल एक सप्ताह होता है।
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मौसम बदलते ही संक्रामक रोगों से संक्रमित रोगियों की संख्या बढने लगती है। चिकनपॉक्स, खसरा व डायरिया का संक्रमण तेजी से फैलने लगता है। चिकन पॉक्स एक संक्रामक बीमारी है। चिकन पॉक्स के कारण है-
- यह रोग रोगी तथा रोग वाहक यानि रोग से ग्रसित व्यक्ति द्वारा फैलता है
- रोगी के खाँसने, छींकने व थूकने से रोग के वायरस हवा में फैल जाते हैं।ऐसी दूषित वायु में स्वस्थ व्यक्ति अगर साँस लेता है तो वह इस रोग से संक्रमित हो जाता है, इस कारण से चिकन पॉक्स फैलता है
- रोगी के सीधे सम्पर्क के कारण यह रोग फैलता है
- जिन बच्चों की त्वचा ज्यादा संवेदनशील होती है, उसे चिकेन पॉक्स होने की ज्यादा संभावनाएं होती हैं
- रोगी के उपयोग में ली गई बर्तन, वस्त्र, बिस्तर, तौलिया, रुमाल तथा अन्य चीजों से इस रोग का प्रसार होता है
- इस रोग की छूत लगने के 15-16 दिन बाद इस रोग के लक्षण प्रकट होते हैं
- इसके अलावा अत्यधिक गर्म या ठंडा होने से भी यह बीमारी होती है। हवा में मौजूद बेरीसेला वायरस ठंडे में ज्यादा सक्रिय होता है जो बच्चों को प्रभावित करती है
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चिकन पॉक्स के लक्षण तो बहुत से लेकिन उसे समझना तेज बुखार और कमजोरी के साथ दाने निकलते है जो सामान्य दानो से अलग होते है जिनहे अन्य चिकन पॉक्स के लक्षण से भी पहचाना जाता है-
- चिकन पॉक्स के लक्षण के प्रारम्भ में अचानक बुखार (101°F से 102°F) होता है
- बुखार के साथ - साथ खाँसी, कमर व पीठ में दर्द तीव्रता से होता है। रोगी को ठंड के साथ बुखार आता है
- बुखार आने के एक दिन बाद (24 घंटे के भीतर) शरीर की त्वचा पर छोटे-छोटे गुलाबी रंग के दाने निकल आते हैं। ये दाने शरीर के अधिकांशत: गर्दन से नीचे भाग जैसे कमर, पीठ, पेट, छाती इत्यादि में निकलते हैं। छाती एवं गर्दन पर दाने अधिक निकलते हैं। गाल में भी दाने निकलते है
- सभी दानों का विकास एक जैसा नहीं होता है बल्कि कुछ दानें बड़े होते हैं तो कुछ छोटे। एक समय में इन दोनों की सभी अवस्थाएँ (मैक्यूल, पैप्युल, बेसिकल तथा पस्टूल) दिखाई देती हैं। इनमें से कुछ दाने अस्पष्ट, कुछ स्पष्ट, कुछ अंडाकार तथा कहीं धब्बे के समान दिखाई देते हैं
- दाने अतिशीघ्र परिपक्वता को प्राप्त करते हैं। बेसिकल में पानी के जैसा द्रव्य भर जाता है जिससे ये ‘ओस की बूंदों'' की तरह दिखाई देते हैं। इसके पश्चात् ये दाने सूखने लगते हैं और इनमें पपड़ियाँ बनने लगती हैं। दानों में पड़ी पपड़ियाँ 12-14 दिनों में सूखकर गिरने लगती हैं। इसकी पपड़ी संक्रामक नहीं होती
- छोटी माता के दाने त्वचा पर स्थायी निशान नहीं छोड़ते। समय के साथ त्वचा पर पड़े निशान स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं
- इस रोग से मृत्यु होने की सम्भावना कम ही रहती है परन्तु जटिलताएँ, जैसे- न्यूमोनिया या मस्तिष्क की बीमारी हो सकती है
- गर्भावस्था के दौरान यह रोग हो जाने से इसका दुष्प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है। जिसके कारण वह या तो मानसिक रूप से दुर्बल एवं बीमार हो सकता है अथवा अपंग हो सकता है
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चिकन पाक्स में शरीर में बहुत तेज खुजली होती है। खुजली से बचने के लिए जई के आटे को पानी में मिलाकर या नीम के पत्तियों को पानी मे उबाल कर स्नान करना चाहिए। इस रोग के लिए कोई विशेष प्रकार की , वैक्सीन तैयार नहीं की गई है। वेरीसेला जोस्टर इम्यूनोग्लोबिन प्रतिरक्षण हेतु दिया जाता है। तो हमे चिकन पॉक्स का घरेलू इलाज और इससे बचाव की कुछ टिप्स अपनानी चाहिए जैसे-
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