प्लेग (ग्रंथिक ज्वर) क्या होता है | प्लेग के लक्षण और घरेलु इलाज

यह अत्यन्त मारक स्वभाव का ज्वर है। मनुष्यों में इसका प्रसार चूहों पर पलने वाले पिस्सू द्वारा होता है। इसका कारण दंडाणु पेस्च्यूला पेस्टिस है जो विभिन्न प्रकार से फैलता है। इस ज्वर में गर्दन, (कांख) कक्षा, एवं वंक्षण (जांघ) की लस ग्रंथियां विशेषकर सूज जाती हैं। अतः इसे ग्रंथिक ज्वर कहते हैं। इसकी अवधि 2-10 दिन तक होती है।

प्लेग के लक्षण

रोग अचानक शुरू होता है। बेचैनी, सिर में दर्द, शिथिलता आदि के साथ तेज बुखार आता है। साथ में चक्कर, प्यास, निद्रा की कमी, उल्टी, शरीर में जलन, कम सुनना आदि लक्षण होते हैं। नाड़ी पहले तेज एवं तनाव युक्त होती है फिर शिथिल हो जाती है। यह तीन प्रकार के होते हैं।

1। ग्रंथिक में।

2। रक्त में।

3।

फेफड़ों में।

ग्रंथिक में अनेक प्रकार के लक्षणों के साथ एक दो दिन में कक्षा आदि की लस ग्रंथियों में सूजन होती है। पांच सात दिन में ग्रंथियों में मवाद पड़कर फोड़े बन जाते हैं। फुफ्फुसीय प्रकार अत्यंत मारक होता है। फेफड़ों में रोग फैल जाता है। न्यूमोनिया के लक्षण मिलते हैं। रक्तगत प्रकार में मवाद होने के कारण तेज बुखार होने लगता है।

प्लेग में घरेलु चिकित्सा

1। चंडेश्वर रस 120 मि.ग्राम अदरक रस व शहद से दो-तीन बार दें।

2। बेताल रस 120 मि.ग्राम दिन में तीन बार गर्म जल से दें।

3। विश्वेश्वर रस 120 मि.ग्राम दिन में तीन बार गर्म जल से दें।

4। वृहत कस्तूरी भैरव रस 120 मि.ग्राम दिन में दो बार दें।

5। सौभाग्य वटी 240 मि.ग्राम दिन में दो बार गर्म जल से दें।

6। योगेंद्र रस 120 मि.ग्राम दिन में दो बार गर्म जल से दें।

7। चंद्रोदय रस 120 मि.ग्राम दिन में दो बार गर्म जल से दें।

8। चतुर्भुज रस 120 मि.ग्राम दिन में दो बार गर्म जल से दें।

9। निंबादि चूर्ण 2-4 ग्राम कुनकुने पानी से दिन में तीन बार दें।

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