मम्पस या गलसुआ ज्वर क्या है | गलसुआ के लक्षण और घरेलु इलाज

कनफेड को मम्पस, पाषाणगर्दभ ज्वर तथा कर्णमूलिक ज्वर भी कहते हैं। इस ज्वर में मुख में लार बनाने वाली ग्रंथियों विशेषतः कान के पास की ग्रंथि में सूजन पाई जाती है। इसमें बराबर की गांठों में ही रोग फैलता है। पहले एक तरफ कर्ण के मूल की ग्रंथि में सूजन होती है जिसमें दर्द के साथ-साथ तेज बुखार भी हो जाता है। बाद में दूसरी तरफ के कान की गांठ को भी प्रभावित कर सूजन कर देता है।

इसका प्रभाव चार से छह दिन तक रहता है। इसमें अंडकोषों की सूजन तथा अधिवृषण शोथ (एपीडीडीमाइटिस) की प्रवृत्ति भी देखी जाती है। जिससे कभी-कभी अंडकोषों का क्षय और बंध्यता भी उत्पन्न हो जाती है। इसका प्रभाव बालक एवं युवा वर्ग में अधिक होता है।

गलसुआ के लक्षण

पहले धीरे-धीरे ठंड लगना, सिर दर्द, बेचैनी, कानों के नीचे दर्द के साथ ज्वर 102°F या अधिक जो दो या तीन दिन में कम या शांत हो जाता है। शुरू में एक ओर प्रायः बाईं ओर कान के नीचे सूजन, एक गांठ की सूजन के बाद दूसरी गांठ में सूजन हो जाती है। एक तिहाई रोगियों में प्रायः एक ओर की कर्ण मूलक ग्रंथि में ही सूजन आती है। सूजन पांच-सात दिन तक रहती है।

गलसुआ में घरेलु इलाज

रोगी को हवादार कमरे में पूर्ण विश्राम, हलका, तरल-पौष्टिक, जल्दी पचने वाला, गरम-गरम भोजन, पेय पदार्थ देना चाहिए। मुख शुद्धि के लिए दशन संस्कार से या फिटकरी से गरारे कराने चाहिए। सूजन पर दशांग लेप का प्रयोग करने पर एक सप्ताह में रोग ठीक हो जाता है। अंडकोषों की सूजन में जल भर जाता है। जिसके दबाव से अंडकोषों का क्षय होने का भय रहता है। अतः शस्त्र कर्म द्वारा जल निकाल देने से तत्काल आराम हो जाता है। तथा अंडकोषों का क्षय नहीं होता।

1। मृग श्रृंग भस्म -120 मि.ग्राम, संजीवनी वटी- 120 मि.ग्राम ---1X4 मात्रा अदरक रस या गरम जल से।

2। अश्व कंचुकी- 120-240 मि.ग्राम 1 मात्रा रात में जल से।

3। दशांग लेप- घी मिलाकर गरम-गरम पोलटीस।

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