गरमी के दिनों में जब तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है, तब यह रोग होता है। आक्रमण प्रायः अचानक, तेज बुखार, बेचैनी, मूच्र्छा, चक्कर आना, सांस लेने में परेशानी; त्वचा में जलन, रूखापन, आंख का लाल होना, पसीने का न आना, नाड़ी की दुर्बलता एवं विषमता, तुरंत चिकित्सा न होने से नाड़ी की दुर्बलता व सांस लेने में कठिनाई से रोगी की मृत्यु हो जाती है।
मूच्र्छानाशक, रक्तपित्तहर, हृदय को बल देने वाली, पुष्टिकारक व ठंडी औषधियों का प्रयोग करें। वस्त्रों को उतारकर पंखे के नीचे लिटाकर ठंडा उपचार करें। सिर पर बर्फ की थैली रखें। बर्फ के जल में चद्दर निचोड़ कर ओढ़ावें। शावर बॉथ तब तक दे जब तक कि ज्वर कम न हो जाए। प्यास को दूर करने के लिए चंदन घिसा हुआ शीतल जल थोड़ी-थोड़ी मात्रा में बराबर दें।
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