टाइफाइड बुखार के लक्षण, कारण, बचाव और प्रकार

इस आर्टिकल के माध्यम से आज हम आपको टाइफाइड से जुड़ी सभी जानकारियों जैसे - टाइफाइड क्या होता है, टाइफाइड के कारण क्या-क्या हो सकते हैं, टाइफाइड के लक्षण एवं टाइफाइड के बचाव या टाइफाइड के घरेलू इलाज जैसी हर जानकारी से अवगत कराना चाहते हैं ताकि आप इस बीमारी से खुद को एवं अपने बच्चों को बचा सकें।

टाइफाइड क्या होता है? - What is Typhoid in Hindi?

टाइफाइड ज्वर एक तीव्र संचारी रोग है, जो सैल्मोनेला टाइफी के कारण होता है। यह सभी उम्र के स्त्री, पुरुष, बच्चे एवं वृद्धों में होता है परन्तु यह रोग 5 से 20 साल के उम्र वाले बच्चों में सबसे अधिक होता है। 20 साल के बाद इस रोग के प्रति प्रतिरक्षात्मक शक्ति बढ़ती है इसलिए यह रोग कम होता है। स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों में यह रोग अधिक होता है। स्त्रियाँ रोगवाहक होती हैं।

एक बार इस रोग से मुक्त हो जाने पर लम्बे समय तक प्रतिरक्षात्मक शक्ति बनी रहती है। अत: दुबारा होने की सम्भावनाएँ कम हो जाती हैं। फिर भी कुछ लोगों में यह रोग दुबारा होते भी देखा गया है। दिल्ली में यह रोग 6-12 वर्ष के बच्चों में अधिक पाया गया था। इसका उद्भवन काल सामान्यत: 10-14 दिन तक होता है।

टाइफाइड के प्रकार - Types of Typhoid in HIndi

टाइफाइड आंत्र ज्वर के अन्तर्गत आता है, तथा टाइफाइड दो प्रकार का होता है:-

  1. टाइफाइड
  2. पैराटाइफाइड

इनमें से टाइफाइड तीव्र प्रकृति का रोग है जबकि पैराटाइफाइड मन्द प्रकृति का रोग है। लक्षणों के आधार पर पैराटाइफाइड तथा टाइफाइड में कोई ऐसा स्पष्ट अन्तर नहीं है, जिससे कि पैराटाइफाइड तथा टाइफाइड में अन्तर किया जा सके।

टाइफाइड ज्वर का प्रकोप संसार के सभी भागों में है, परन्तु विकसित देशों की अपेक्षा विकासशील देशों में इसका प्रकोप अधिक है। यह रोग पूरे वर्ष होता है, परन्तु गर्मी और वर्षा ऋतु में यह अधिक फैलता है तथा जुलाई से सितम्बर माह तक इसका प्रकोप सबसे ज्यादा होता है।

टाइफाइड के लक्षण - Symptoms of Typhoid in Hindi

टाइफाइड के लक्षण अलग-अलग सप्ताह में कुछ इस प्रकार के होते हैं:-

  • पहले सप्ताह में बदन में तीव्र दर्द रहता है।
  • उल्टी व चक्कर आते हैं।
  • सिर में दर्द और खाँसी रहती है।
  • कमर में दर्द होने लगता है ।
  • दस्त अथवा कब्ज हो जाता है।
  • नाड़ी गति धीमी हो जाती है।
  • बुखार 101°F से 102°F तक हो जाता है।
  • दूसरे सप्ताह में ज्वर र 104°F से 105°F तक पहुँच जाता है।
  • रात को बुखार दिन की अपेक्षा अधिक रहता है।
  • रोगी बेहोश होने लगता है तथा कई रोगी तो चुपचाप शांत हो जाते हैं।
  • कई रोगी बड़बड़ाने लगते हैं।
  • रोगी का वजन घट जाता है।
  • रोगी के जीभ एवं मुँह के किनारों एवं कोनों पर सफेद आवरण जम जाता है।
  • पेट तथा कमर पर छोटे-छोटे दाने उभर आते हैं।

टाइफाइड के कारण - Causes of Typhoid in Hindi

टाइफाइड के जीवाणु सर्वप्रथम मुँह में प्रवेश करके आँत पर आक्रमण करते हैं तथा पूरे शरीर को प्रभावित करते हैं। इसके बाद ये जीवाण छोटी आँत में पहुँचता है तथा छोटी आँत की श्लेष्मिक झिल्ली में छेद कर डालता है। अब यह लिम्फ के द्वारा लिम्फ नोड तक पहुँचता है और वहाँ यह तीव्र गति से गुणनक्रिया के द्वारा वंशवृद्धि करता है। रक्त परिसंचरण के दौरान अब ये जीवाणु रक्त में पहुँचते हैं तथा वहाँ से ये थोरैसिक नलिका में पहुँचकर ट्रान्जीटरी बैक्ट्रीमा के कारण बनते हैं। इसी तरह ये जीवाणु रक्त द्वारा तिल्ली, लिवर और बोन मेरो में पहुँचकर रेटीक्यूलोइन्डोथिलियल कोशिका पर आक्रमण करते हैं तथा उन्हें नष्ट कर डालते हैं।

टाइफाइड अन्य के कारण कुछ इस प्रकार हैं:-

  • यह रोग हैजे की भाँति दूषित जल, भोजन तथा दूध द्वारा प्रसारित होता है।
  • रोगी व्यक्ति के मल में इसके जीवाणु पाये जाते हैं।

    अत: मक्खियाँ मल पर बैठकर इसके जीवाणु अपने साथ लाती हैं तथा भोजन, दूध व जल पर बैठकर रोग को फैलाती हैं।

  • बासी भोजन, बिना बँका भोजन व बाजार की दूषित मिठाइयों के सेवन से यह रोग फैलता है।
  • व्यक्तिगत अस्वच्छता, जैसे-शौच जाने के बाद साबुन से हाथ नहीं धोना, गंदे मैले कचैले वस्त्र पहनना, गंदे पानी, तालाब इत्यादि में वस्त्र धोना अथवा नहाना, सड़े गले फलों एवं सब्जियों के सेवन से भी यह रोग फैलता है।
  • रोगी व्यक्ति द्वारा खुले में मल-निष्कासन, मूत्र-त्याग इत्यादि से भूमि तथा जल दूषित होता है फलत: रोग का प्रसार होता है।

टाइफाइड से बचाव - Prevention From Typhoid

टाइफाइड से बचाव के उपाय कुछ इस प्रकार हैं:-

  • रोगी की पहचान करके उसे उचित इलाज हेतु अस्पताल अथवा नर्सिंग होम में भर्ती करवाना चाहिए।
  • रोगी के वस्त्र, रुमाल, तौलिया इत्यादि को क्लोरिन अथवा हाइड्रोजन परक्लोराइड के ठंडे घोल में भिगोकर भाप द्वारा विसंक्रमित करना चाहिए।
  • रोग फैलने की दशा में पूरे परिवार को टाइफाइड प्रतिरक्षी टीका लगवाना चाहिए। अगर यह रोग स्थानिक रूप ले लेता है तो वहाँ के सभी वासियों को भी इसका टीका लगवाना चाहिए।
  • रोगी तथा रोगवाहक व्यक्ति का स्वास्थ्य परीक्षण करना चाहिए जब तक कि टाइफाइड के जीवाणु उसके शरीर से पूर्ण रूप से नहीं निकल जायें।
  • स्वच्छ जल एवं स्वच्छ दूध के वितरण का प्रबन्ध होना चाहिए। मल निष्कासन तथा मल-निस्तारण की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
  • स्वच्छ पर्यावरण तथा व्यक्तिगत स्वस्थ आदतों को अपनाकर इस रोग को फैलन र रोका जा सकता है।
  • मक्खियों व अन्य हानिकारक कीड़े-मकोड़ों को समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए।

टाइफाइड का टीका - Vaccination For Typhoid

भारत में दो प्रकार की एन्टी टाइफाइड वैक्सीन उपयोग में ली जा रही है।

  1. मोनोवैलेन्ट एन्टी टाइफाइड वैक्सीन
  2. बाइवैलेन्ट एन्टी टाइफाइड वैक्सीन

मोनोवैलेन्ट एन्टी टाइफाइड वैक्सीन का उपयोग टाइफाइड से बचने के लिए सबसे ज्यादा किया जाता है। यह वैक्सीन मृत सैल्मोनेला टाइफी से तैयार किया जाता है। इसे AKD वैक्सीन (Acetone Killed and Dried Saccine) भी कहते हैं।

बाइवैलेन्ट एन्टी टाइफाइड वैक्सीन, सैल्मोनेला टाइफी तथा पैराटाइफी A से तैयार किया जाता है। इसका प्रयोग भी टाइफाइड से बचाने के लिए किया जाता है।

एन्टी टाइफाइड वैक्सीन का टीका सभी उम्र के बच्चों एवं बड़ों को लगाना चाहिए परन्तु 1 वर्ष से छोटे बच्चों को यह टीका नहीं लगाना चाहिए। एक बार टीका लग जाने पर व्यक्ति में 3 वर्ष तक प्रतिरक्षात्मक शक्ति बनी रहती है। इसके लिए प्रारम्भ में 0.5 ml की एक सुई तथा दूसरा 1.0 ml का टीका 10 दिन के बाद लगाया जाता है। बच्चों को बड़ों की अपेक्षा आधी मात्रा दी जाती है।

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